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किच्छा शुगर फैक्ट्री की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन ?

लक्ष्मण सिंह बिष्ट किच्छा
किच्छा , टिंबर किंग के नाम से मशहूर स्वर्गीय दान सिंह बिष्ट ने जब किच्छा शुगर कंपनी की आधारशिला रखी थी तो यह उनका एक ड्रीम प्रोजेक्ट था उस समय भी किच्छा शुगर फैक्ट्री के लिए उन्होंने विदेशों से मशीने मंगवाई थी स्वर्गीय दान सिंह मालदार का सपना इस शुगर फैक्ट्री को एक आधुनिक शुगर फैक्ट्री के रूप में स्थापित करने का था परंतु आज किच्छा शुगर फैक्ट्री की जो हालत है वह दिन पर दिन बद से बदतर होती जा रही है जबकि किसी समय किच्छा शुगर फैक्ट्री आसपास के क्षेत्र की फैक्ट्रीयौ मे सबसे बढ़िया कार्य करती थी चौधरी रणधीर सिंह के कार्यकाल तक किच्छा शुगर फैक्ट्री का रिकॉर्ड चीनी बनाने एवं किसानों के गन्ना भुगतान में बहुत अच्छा था परंतु बदलते समय के साथ जब से शुगर फैक्ट्री का चार्ज पीसीएस अधिकारियों के हाथों में गया है तब से इस फैक्ट्री के बुरे दिन शुरू हो गए तकनीकी जानकारी न होने के कारण एवं अधिकारियों के गैर जिम्मेदाराना रवैए और शासन स्तर पर बैठे अधिकारियों की हिला वाली के कारण आज किच्छा शुगर फैक्ट्री अपने हालात पर आंसू बहा रही है क्षेत्र की जनता के मन में यह सवाल उठ रहा है की इस फैक्ट्री को भी सरकार निजी हाथों में सौंपने की भूमिका तो नहीं बना रही है क ई एकड़ जमीन में स्थापित इस फैक्ट्री को लेने के लिए कई कॉरपोरेट घराने अपनी नज़रें गडाये बैठे हैं सरकार में बैठे अधिकारियों की घोर लापरवाही और स्थानीय स्तर पर कार्यरत अधिकारियों ने कभी भी किच्छा शुगर फैक्ट्री की बेहतरी के लिए नहीं सोचा कुछ अधिकारियों ने जहां करोड़ों रुपए रिनोवेशन के नाम पर खर्च कर डाले परंतु उसका परिणाम आशा के अनुरूप नहीं रहा आज भी फैक्ट्री रुक रुक कर चल रही है जबकि अभी हाल ही में इस पर करोड़ों रुपया खर्च किया गया है पैसा कहां लग रहा है किस मद में लग रहा है और उसका रिजल्ट क्या आ रहा है यह किसी ने जानने की कोशिश नहीं की शासन स्तर पर भी चीनी आवंटन में मिली भगत का खेल खेला जाता है जब चीनी महंगी होती है तब प्राइवेट सेक्टर की फैक्ट्री को कोटा आवंटित कर दिया जाता है जिस कारण चीनी का भुगतान सरकारी या अर्ध सरकारी चीनी मील किसानों को समय पर नहीं कर पाती है फैक्ट्री में जिम्मेदार पदौ पर बैठे अधिकारी भी सिर्फ अपना समय काटने के मकसद से बैठे प्रतीत होते हैं शुगर फैक्ट्री की बेहतरी के लिए किसी अधिकारी ने कोई प्रयास नहीं किया सबका मकसद सिर्फ खानापूर्ति रही इसी का परिणाम है कि आज किच्छा शुगर फैक्ट्री दिन पर दिन डूबती जा रही है यही हालात रहे तो किच्छा शुगर फैक्ट्री को निजी हाथों में सौंप जाने की जनता की आशंका सच में परिवर्तित हो जाएगी हालांकि किच्छा विधानसभा में नेता बहुत है परंतु किच्छा शुगर फैक्ट्री और क्षेत्र के किसानों की बेहतरी के लिए कभी किसी नेता द्वारा व्यापक आंदोलन नहीं किया गया और अगर किसी ने आंदोलन करने का प्रयास भी किया तो दूसरे नेताओं ने उसकी टांग खींचकर उस प्रयास को सिरे चढ़ने से पहले ही खत्म कर दिया नेताओं की अपनी अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का शिकार स्थानीय किसान एवं शुगर फैक्ट्री हो रही है यदि यही आलम रहा तो वह दिन दूर नहीं जब किच्छा शुगर फैक्ट्री निजी हाथों में चली जाएगी अब देखना यह है कि इस शुगर फैक्ट्री के बेहतरी के लिए कौन भगीरथ प्रयत्न करता है किच्छा शुगर फैक्ट्री अपने पुराने गौरवमई दिनौ को वापस ला पाती है या निजी संपत्ति बनेगी यह आने वाला वक्त ही बताएगा

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